आईपीएस वाई. पूरन कुमार सुसाइड केस: हरियाणा में विरोध तेज, सरकार अलर्ट मोड पर
हरियाणा में सीनियर आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के बाद राज्यभर में उबाल है। जातिगत उत्पीड़न और वरिष्ठ अधिकारियों पर गंभीर आरोपों से जुड़े इस मामले ने प्रशासन को संकट में डाल दिया है। सरकार ने हालात को देखते हुए पूरे राज्य में अलर्ट जारी कर दिया है और सभी जिलों को सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं।
सरकार की आपात बैठक, आदेश जारी
हालात की गंभीरता को भांपते हुए हरियाणा सरकार ने डीसी, एसपी और संभागीय आयुक्तों को विशेष पत्र भेजा है। इसमें स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि सभी अफसर अपने-अपने इलाकों में स्थानीय संगठनों और समाज के नेताओं के साथ मिलकर शांति बनाए रखने के लिए काम करें।
सरकारी आदेश में कहा गया है:
“घटनास्थल की निरंतर निगरानी करें, सामाजिक तनाव की संभावना को भांपें और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सक्रिय रहें।”
सोनीपत से लेकर भिवानी तक प्रदर्शन
आईपीएस अधिकारी पूरन कुमार के समर्थन में राज्य भर में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। सोनीपत में दलित संगठनों ने कैंडल मार्च निकाला और नारेबाजी की, जबकि अन्य जिलों में भी धरने-प्रदर्शन हुए हैं।
कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने जिला मुख्यालयों पर विरोध दर्ज कराया है, जबकि 31 सदस्यीय संघर्ष समिति ने सरकार को अल्टीमेटम दिया था कि अगर 48 घंटे में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई, तो राज्यव्यापी प्रदर्शन किया जाएगा।
राजनीतिक दबाव में डीजीपी छुट्टी पर भेजे गए
सरकार पर बढ़ते दबाव के बीच सोमवार रात बड़ा प्रशासनिक फैसला लिया गया। डीजीपी शत्रुजीत कपूर को छुट्टी पर भेज दिया गया, जिन पर आईपीएस पूरन कुमार ने सीधे आरोप लगाए थे। उनकी जगह ओपी सिंह को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया गया है।
यह कदम ऐसे समय में आया है जब विरोध प्रदर्शन की धमकी ने राज्य की कानून-व्यवस्था को चुनौती देना शुरू कर दिया था।
क्या है पूरा मामला?
7 अक्टूबर को 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार ने कथित रूप से खुद को गोली मार ली। उनके पास से बरामद 8 पन्नों के सुसाइड नोट में उन्होंने हरियाणा पुलिस के कई सीनियर अधिकारियों पर जाति-आधारित उत्पीड़न, मानसिक प्रताड़ना और सार्वजनिक अपमान जैसे गंभीर आरोप लगाए।
उन्होंने डीजीपी शत्रुजीत कपूर, रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारनिया समेत कुल 8 अधिकारियों के नाम लिए हैं।
दलित संगठनों और विपक्ष का सरकार पर हमला
पूरन कुमार की जातिगत उत्पीड़न की दास्तान सामने आने के बाद दलित संगठनों ने इसे सामाजिक न्याय का बड़ा सवाल बताया है। उनका कहना है कि एक दलित अधिकारी को आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाना सिस्टम में गहरे बैठे भेदभाव की झलक है।
कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दलों ने भी इसे “सरकार की जातिवादी नीतियों और ढुलमुल रवैये” का नतीजा बताया है। राहुल गांधी पहले ही चंडीगढ़ जाकर परिवार से मुलाकात कर चुके हैं।
निष्कर्ष:
आईपीएस वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या महज एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही, जातिगत न्याय और सामाजिक समरसता की परीक्षा बन गई है। हरियाणा सरकार के सामने अब सिर्फ विरोध को नियंत्रित करना नहीं, बल्कि पीड़ित परिवार को न्याय देना और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना एक बड़ी चुनौती बन चुका है।